Monday, September 11, 2023

हो जा रंगीला रे!

रंगीला : फ़िल्म रंगीला 1995 को रिलीज़ हुई थी। आमिर खान की जोरदार गंभीर कमबैक वाली फिल्म थी ये रंगीला।  इस फिल्म को 28 साल पूरे हो गए हैं। 

रंगीला ही वो फिल्म थी जिसके बाद आमिर खान ने अवॉर्ड फंक्शन्स में जाना बंद कर दिया था। दरअसल, आमिर को यकीन था कि रंगीला में उनके काम के लिए उन्हें ही फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिलेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उस साल ही शाहरुख की DDLJ (दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे) भी आई थी, रंगीला के लगभग 1 महीने बाद ही।
 फिल्मफेयर के सारे मेजर अवॉर्ड्स डीडीएलजे ले उड़ी और कालजयी cult फ़िल्म का तमगा भी। कहा जाता है कि इसी घटना के बाद शाहरुख के साथ आमिर के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रह गए थे। हालांकि बाद में दोनों के बीच सबकुछ ठीक हो गया।
ये फ़िल्म कई मायनों में एक मील का पत्थर थी.  DUBBED फ़िल्म रोजा (1992), हमसे है मुकाबला (1994) और बॉम्बे (मार्च 1995) के बाद रहमान के गाने हिंदी सिने दर्शकों को सुनने मिले थे जो धूम मचा रहे थे, उस कालखंड में ऑडियो कैसेट्स ही आमजन के बीच सुलभ और लोकप्रिय थे, CD (Compact Disc) कुछ साल बाद आयी थी जिसे CD केसेट कहा जाता था। 
90s का वो दौर अलग ही था, जिन्होंने उस दौर को जीया है उनके दिल दिमाग और यादों में उस दौर का नशा ऐसा छाया है कि अब नशा टूटने के बाद भी उस नशे में जाने को दिल चाहता है। 

थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत है जैसी जिंदगी के बावजूद Sine wave का वो  pick है 90s का वो दौर की उस दौर में अपना बचपन लड़कपन स्कूल/कॉलेज जीवन जीने वाले उस मादकता भरे एहसास को मजनू बन के जाने कहाँ कहाँ ढूंढते है। 

उस दौर में नया नया कंप्यूटर युग आया था, अर्थव्यवस्था में बाजार खुलने से थोड़ी तेजी थी, IT में  Y2K की समस्या सामने खड़ी थी,  समस्या हल करने को थोड़ा भी कंप्यूटर हार्डवेयर सॉफ्टवेयर जानने समझने वाले को विदेश में अच्छी खासी नौकरी मिल जा रही थी। 

दूरदर्शन के एकछत्र राज को ज़ी tv , स्टार टीवी , सोनी , ATN आदि चैलेंज कर रहे थे और बच्चों युवाओं को लुभा रहे थे।  शायद बेहतर वर्णन न हो पाए पर समझिए कि एकदम टिपिकल 90s का दौर था।   
फ़िल्म का म्यूज़िक बेहतरीन था , इस फिल्म में आशा भोंसले जी ने दो गीत गाए थे। रंगीला रे व तन्हा तन्हा। और इत्तेफाक देखिए। रिलीज के दिन 8 सितंबर को ही आशा भोंसले जी का भी जन्मदिन पड़ता है। फिल्म सुपरहिट रही थी। लेकिन ये भी एक इत्तेफाक है कि आमिर खान ने इस फिल्म के बाद अभी तक किसी और फिल्म में उर्मिला मातोंडकर व रामगोपाल वर्मा के साथ काम नहीं किया है। वैसे इस फिल्म के लिए जैकी श्रॉफ को फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर इन सपोर्टिंग रोल ज़रूर मिला था। जबकी आशा भोंसले जी को तन्हा तन्हा सॉन्ग के लिए फिल्मफेयर स्पेशल अवॉर्ड, रहमान को फिल्मफेयर बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर अवॉर्ड, मनीष मल्होत्रा को फिल्मफेयर बेस्ट कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर अवॉर्ड व अहमद खान को रंगीला रे सॉन्ग के लिए फिल्मफेयर बेस्ट कोरियोग्राफर अवॉर्ड दिया गया था।
आमिर के साथ साथ इस फ़िल्म से उर्मिला मातोंडकर ने भी जोरदार कम बैक किया था। उर्मिला जो इस फ़िल्म की मुख्य अभिनेत्री थी,  इस फ़िल्म में अपने सेक्सी अवतार से छा गयी थी। जबकि उन्हें 70S की गुलज़ार की बेहतरीन फ़िल्म मासूम के लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा वाले गीत के बाल कलाकार के रूप में  याद किया जाता था। 
1991 की फ़िल्म नरसिम्हा में उर्मिला का चुलबुली अभिनेत्री के रूप में लांच हो चुका था , 1992 की शाहरुख अभिनीत फ़िल्म चमत्कार में भी वो मुख्य अभिनेत्री थी किन्तु रामगोपाल वर्मा की रंगीला से उसका कमबैक सभी मुख्य अभिनेत्रियों को हिला देने वाला था। 
रामगोपाल वर्मा का डायरेक्शन भी एक बड़ी चर्चा का विषय था उन्होंने भी 15-20 साल तक अपनी कला और व्यावसायिक मसाला फिल्मों के बीच अच्छी फिल्में दीं। 
यदि आप 80 या 90 के दशक के अंत में बड़े हुए हैं, तो आप आज की पीढ़ी की तुलना में कहीं अधिक भाग्यशाली हैं।  पूछो क्यों?  क्योंकि आपने स्मार्ट फोन, टैबलेट, फेसबुक, सेल्फी और अन्य चीजों से पहले अपने वास्तविक बचपन का आनंद लिया था...

आज आपके पास सबूत बहुत हैं पर सच्ची तस्वीरें और यादें कम और हल्की हैं जबकि उस 80s 90s के दौर की  तस्वीरें और सुबूत कम हैं किंतु बातें यादें किस्से और भावनाएं कहीं अधिक और दिल content वाली सी हैं....

If you grew up in late 80s or 90s, you are much fortunate than today’s generation. Ask me why? Because you enjoyed your real childhood before smart phones, tablets, facebook, selfies, and other ...

 #Rangeela #RangeelaRe #rangeela1995 #AamirKhan# comeback # 90s , dil se

Sunday, February 19, 2023

AI Artificial Intelligence and we( कृत्रिम बुद्धिमत्ता और हम):

बहुत सिंपल है AI को समझना, पर उसके पहले थोड़ा जरूरी है कि आई ( i)  याने कि इंटेलिजेंस(बुद्धिमत्ता) को समझना.
 शायद आपने और कई कंप्यूटर के विद्यार्थियों ने अपनी कोर्स बुक में AI को पढ़ा होगा। 
पुस्तकों में AI को परिभाषित करने और समझाने के पहले प्राकृतिक बुद्धिमत्ता को ऐसे समझाया जाता है कि: बुद्धिमत्ता का अर्थ होता है बेहतर निर्णय लेने की क्षमता (decision making ability), वो भी अपने पास मौजूद ज्ञान के भंडार (नॉलेज बेस) के बलबूते से।
अतः  इसी बात से किसी की इंटेलिजेंस डिसाइड की जाती है . अर्थात फार्मूला हुआ ये कि : 
Knowledge Base + Decision making ability = intellingence 
अब इस प्राकृतिक बुद्धिमत्ता को कम्प्यूटर के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) में परिवर्तित करने के लिए लगेगा खूब सारा नॉलेज और उस जानकारी के बूते पर सही निर्णय लेना की क्षमता। 
किसी ने बताया है कि CHATGPT जो है वो 40TB के लगभग KB से समृद्ध है जो की एक आम इंसान के जानकारी के टक्कर का है। डिसीजन मेकिंग के लिए भी मिलियन बिलियन IF THEN BUT जैसे डिसीजन मेकिंग लूप्स और लॉजिक टूल्स होंगे ही। 
 तो पिछले 2-3दशकों में इस पर अच्छा खासा काम हुआ है और प्रगति हुई है। इसके फलस्वरूप ही एआई अब काफी समृद्ध हो चुका है एवं निरंतर प्रगति की ओर है किंतु फिर भी फिलहाल इसकी अपनी सीमाएं हैं, और मन मस्तिष्क आवेगों और भावनाओं से संचलित ह्यूमन ब्रेन तो निस्संदेह किसी भी कृत्रिमता से बने मशीन से अधिक मानवीय है ही। 

अतः कई मामलों में हम इस AI से फ़िलहाल तो आगे ही हैं किन्तु ये भी नहीं भूलना चाहिये कि कई मामलों में वह भी हम से आगे हैं। 
रचनात्मक कार्य और AI : 
कला और साहित्य जैसे रचनात्मक कामों में फिलहाल ह्यूमन ही AI से आगे हैं, यद्यपि AI भी अच्छी जुगलबंदी कर सकता है, कहानी लिख सकता, कहानी में बेहतर ट्विस्ट बना सकता है, कविता लिख सकता है, ड्रॉइंग और एनीमेशन बना सकता है, तथा कंप्यूटर की कोडिंग आदि में तो सामान्य इंसानों से  कहीं आगे है। पर फिलहाल शब्दों के खेल में ऐसा irony नहीं कर सकता।  कैसा? ऐसा👇 

 BBC :- हम पर छापा क्यों ?

सरकार:- हम पर छापा क्यों?
                  
...जो भी हो,  मानव की सहज i और मानवनिर्मित AI के बीच का यह संघर्ष रोचक है और दुनिया को बदल देने की क्षमता रखता है।

माँ सुनाओ मुझे वो कहानी...

माँ सुनाओ मुझे वो कहानी,
जिसमें राजा ना हो ना हो रानी..

जो हमारी तुम्हारी कथा हो,
जो सभी के ह्रदय की व्यथा हो,
गंध जिसमें भरी हो धरा की,
बात जिसमें ना हो अप्सरा की,
हो ना परियाँ जहाँ आसमानी...

जो किसी भी ह्रदय को हिला दे,
आदमी आदमी को मिला दे,
आग कुछ इस तरह की लगा दे,
आग में भी माधुरी मिला दे,
जो सुने हो चले पानी पानी..

वो कहानी जो हँसना सिखा दे,
पेट की भूख को जो भुला दे,
जिसमें सच की भरी चाँदनी हो,
जिसमें उम्मीद की रोशनी हो,
जिसमें ना हो कहानी पुरानी,
माँ सुनाओ मुझे वो कहानी....


-lyrics by नन्दलाल पाठक, Singer: Siza Roy, 
Album: Cry for CRY, Year-1991, Composer artist: Jagjit Singh , label : HMV SAREGAMA 
किस्से ,कहानी, और बातें बहुत सी हैं, हर बात पर एक बात है। पर क्या किस्से , कहानियों , मिथकों चमत्कारों से विकट समस्याओं का समाधान है? ये एक बड़ा यक्ष प्रश्न है। ऐसे ही जब कहीं कभी कोई भूखा बच्चा भूख की आग से लड़ता , हंसी और खुशी को तरसता बच्चा , क्या सोचता होगा इस बात को इस कवि नंदलाल पाठक ने सोंचा और लिखा.. । न जाने कैसे किस तरह से ये गीत जाने माने मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह तक पहुंचा होगा और उन्हें इस गीत ने छुआ होगा। फिर उनके अलकेमिस्ट वाले दिल, दिमाग, हुनर और हाथों ने इसे जब गोद ले लिया तो फिर ये गीत शिज़ा रॉय की आवाज में जो बनकर आया, फिर तो न जाने कितनों के दिल को रुला कर, करोड़ों की आंखों से नायाब आँसू बनके बहा होगा पता नहीं...
 
ये गीत CRY FOR CRY नाम से HMV सारेगामा के एक ग़ज़ल अल्बम में साल 1991 आया था। सारे गीत गहरे दुख लिए हुए थे। सुना था कि इसकी कमाई बच्चों के लिए काम करने वाली NGO संस्था CRY (Child Rights and You) को दिया  जाना पहले ही तय किया गया था, इसलिए ही इस एल्बम का नाम ये रखा गया। 


ये है इस नायाब गीत ग़ज़ल की youtube लिंक -  https://youtu.be/ZwF73004LmM

और ये जगजीत सिंह के गाये एक live version का link :  

वैसे बहुतों ने इसे अपने अपने ढंग, ढब और समझ से गाया है..बेहद पसंद में से एक रहा है ये..हमेशा से।

Friday, January 6, 2023

क्यूँ दुनिया का नारा- जमे रहो? क्यों दुनिया का इशारा जमे रहो... तारे जमीन पर.. फ़िल्म साहित्य विचार हम और विरोधाभास

Every Child is special!  साल 2007 की हिंदी फ़िल्म तारे जमीन पर को बहुत सी बातों के लिए याद रखा जा सकता है, उसके गीतों के लिए भी। 

एक ये गीत भी है। -   

दुनिया का नारा- जमे रहो!
मंजिल का इशारा- जमे रहो!
दुनिया का नारा - जमे रहो!
मंजिल का इशारा- जमे रहो!
इस गीत के पहले भाग में एक आदर्श एवं अनुशासित जीवन की झलक दिखाई गई है तो वहीं गीत के दूसरे भाग में एक खिलंदड़ जिज्ञासु और एक विपरीत अनादर्श जीवन की झलक दिखलायी गयी है। दोनो ही एक दूसरे के पूरक एवं विरोधाभाषी है। a big contradiction!!! 

गीत के बोल हैं- 
कस के जूता, कस के बेल्ट,
खोंस के अन्दर अपनी शर्ट,
मंजिल को चली सवारी,
कंधो पे ज़िम्मेदारी..

हाथ में फाइल मन में दम
मीलों मील चलेंगे हम
हर मुश्किल से टकरायेंगे
टस से मस ना होंगे हम!

दुनिया का नारा- जमे रहो!
मंजिल का इशारा- जमे रहो!
दुनिया का नारा - जमे रहो!
मंजिल का इशारा- जमे रहो!

ये सोते भी हैं Attention
आगे रहने की है Tension
मेहनत इनको प्यारी है
एकदम आज्ञाकारी हैं (आज्ञाकारी हैं)

ये ऑमलेट पर ही जीते हैं, 
ये टोनिक सारे पीते हैं,
वक़्त पे सोते, वक़्त पे खाते,
तान के सीना बढ़ते जाते..

दुनिया का नारा- जमे रहो!
मंजिल का इशारा- जमे रहो!
दुनिया का नारा- जमे रहो,
मंजिल का इशारा-जमे रहो!
-----
यहाँ अलग अंदाज़ है,
जैसे छिड़ता कोई साज़ है,
हर काम को टाला करते हैं,
ये सपने पाला करते हैं!

ये हरदम सोचा करते हैं,
ये खुद से पुछा करते हैं-
क्यूँ दुनिया का नारा - जमे रहो?
क्यूँ मंजिल का इशारा - जमे रहो?
क्यूँ दुनिया का नारा जमे रहो?
क्यूँ मंजिल का इशारा जमे रहो?

ये वक़्त के कभी गुलाम नहीं,
इन्हें किसी बात का ध्यान नहीं,
तितली से मिलने जाते हैं,
ये पेड़ों से बतियाते हैं!

ये हवा बटोरा करते हैं,
बारिश की बूँदें पढ़ते हैं,
और आसमान के कैनवास पे,
ये कलाकारियाँ करते हैं..

क्यूँ दुनिया का नारा- जमे रहो?
क्यूँ मंजिल का इशारा जमे रहो?
क्यूँ दुनिया का नारा जमे रहो?
क्यूँ मंजिल का इशारा जमे रहो..


ध्यान दीजियेगा की आदर्श अनुशासित वाला पार्ट तेज गति और शोर से भरा हुआ है किंतु रचनात्मक और अनादर्श को दिखाने वाला भाग एकदम से स्लो टेम्पो के साथ शान्ति ले आता है और फिर वापस शोर की तरफ जाता है। गीत में कवि कहीं भी जजमेंटल नहीं हुआ है कि- ये अच्छा है और ये बुरा! पर क्या समाज में हम व्यवहारिक रूप से ऐसे हैं? सोंचने वाली बात है न??? 
अच्छे सवाल , अच्छे जवाब तक पहुंचाते हैं और एक बेहतर दुनिया बनाते हैं...और यह भी याद रखें कि- हर बच्चा खास है!

गाने के लिंक्स और डिटेल्स नीचे हैं, सुनियेगा..
Song Name: Jame Raho
Album: Taare Zameen Par,
Year: 2007 
Singer(s): Vishal Dadlani, shankar mahadevan
Starcast: Aamir Khan, Tanay Chheda, Darsheel Safary, Tisca Chopra
Composer: Shankar-Ehsaan-Loy, Lyrics: Prasoon Joshi
YouTube Link:  https://youtu.be/VofN1x93TG0

Saturday, December 3, 2022

आदमी बुलबुला है पानी का,

आदमी बुलबुला है पानी का.. , अच्छी कहानियां और यादें बनाएं , जीवन क्षणभंगुर है :
 
एक फिल्मी गाना है , एक जमाने में दूरदर्शन के चित्रहार में खूब आता था, तो खूब सुना है, पर इसके अर्थ पर उस  उम्र में बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया, देना चाहिए था..सुन के देखियेगा। गीत है- 
 आदमी मुसाफिर है , 
आता है , जाता है ,
आते जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है..

ये हिंदी फिल्मी गीत जीवन के गहरे अर्थ बताने वाला दार्शनिकता का भाव लिए हुए है। 

जीवन है तो मृत्यु भी है.., फ़िल्म मैट्रिक्स में इसपर एक प्रभावी quote है कि-  हर शुरआत का एक अंत है.. , दार्शनिक कहते हैं कि हार जीत और सबकुछ को ही उसकी संपूर्णता में स्वीकारना चाहिए , यानी अच्छे को भी और बुरे को भी। रिश्तों में, लोगों में तथा जीवन में हम सब अक्सर अच्छा अच्छा ही चाहते हैं, केवल सुख और  अमृत ही चाहिए, दुख कड़वाहट और विष नहीं..

 Netflix पर रिलीज हुई फ़िल्म Good Bye देखिएगा...इसकी अधिकतर समीक्षाओं में एक्टिंग को, निर्देशन को, संवादो को या स्क्रिप्ट को रिव्यू करते है वैसा ही किया सबने..पर

Good Bye फिल्म में रिव्यू तो दरअसल मृत्यु का करना चाहिए था, कि जब कोई अपना इस दुनिया से चला जाता है तो दूसरे कैसे रिएक्ट करते हैं, और अपनों को क्या फील होता है..? दिखाया सब है लेकिन कही न कही बात थोड़ी अधूरी रह गई है ऐसा लगता है..!
इसी विषय पर इससे पहले हाल फिलहाल में दो फिल्मे और आई हैं ' रामप्रसाद की तेरहवीं' और 'पगलैट'..

हिंदुओ में मृत्यु के बाद तेरह दिनों के शोक में क्या क्या घटता है ये इन तीनों फिल्मों में मौजूद है..
मुझे पर्सनली इन तीनों फिल्मों में 'पगलैट' ही जिंदगी और वास्तविकता के ज्यादा करीब लगी.

गुड बाय में सबने अच्छा अभिनय किया है, महानायक अमिताभ बच्चन भी हैं और 'पुष्पा' वाली रश्मिक मंधाना भी हैं फ़िल्म में..मैने कुछ रिव्यूज देखे लेकिन किसी ने सुनील ग्रोवर के किरदार का जिक्र तक नहीं किया जबकि.. मेरे हिसाब से इस फ़िल्म में वह पात्र सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है..
ये किरदार महसूस करने वाला है ज्यादा है, बयान करने वाला कम..
मैं थोड़ी कोशिश करता हूं इसको बयान करने की..क्योंकि मैने इसे शायद ज्यादा गहराई से महसूस किया है..

हरीश भल्ला(अमिताभ बच्चन) की पत्नी का निधन हो चुका है और उनकी अस्थियों को लेकर गंगा में विसर्जित करने पूरा परिवार जा रहा है..जिस पंडित को ये अंतिम क्रिया करनी है वो महसूस करता है कि घर की बेटी तारा  इन रीत रिवाजो को लेकर नाखुश है, और इसे ढोंग मानती है..इन सबमें वैज्ञानिक कारण खोजती है..
पंडित बने सुनील ग्रोवर जो कुछ भी इस लड़की को कहते है वो ही इस पूरी फिल्म का सार शिक्षा और मोरल है..!
बल्कि यूं कहे कि फ़िल्म ही नहीं बल्कि पूरे जीवन का सार है..!

पंडित बने सुनील ग्रोवर उन्हे महाभारत की एक कहानी सुना कर बताते हैं कि हम अस्थियां विसर्जित क्यो करते हैं...? ताकि मनुष्य को उसके पापों से, उसके बुरे कर्मो से मुक्ति मिल सके..!
लड़की पंडित जी से असहमति प्रकट  करती है और बोलती है कि माफ कीजिए पंडित जी हम अस्थियां इसलिए प्रवाहित करते हैं क्योकि उसमे फॉस्फेट होता है जो हमारी खेती और मिट्टी की उर्वरता के लिए अच्छा होता है.. बाकी आप जो कह रहे हैं ये सब तो अंधविश्वास है..और वो वहां से उठकर चली जाती है...!
पंडित उनकी बात सुनकर गुस्सा नहीं होते..फिर रास्ते में सुनील ग्रोवर इस लड़की को कहते हैं कि..तारा जी आप बिल्कुल सही कह रही हैं, कि सब साइंस है , लेकिन ये साइंस की बात कितनी बोरिंग है न.?  ना तो इसने आपकी परेशानियों से आपका ध्यान हटाया, ना ही कोई दर्शन या climax  मिला, और ना ही आप इतनी दूर से गंगा में अस्थियां विसर्जन करने इसलिए आई हैं कि गंगा का पोषण हो सके..! 
दरअसल ये कहानियां ही हैं जो दुनिया चलाती हैं..! कहानियों से लंबी उमर ना आपकी है, न मनुष्य की , ना डायनासोर की ,
और ना हो इस दुनिया की..!
बस कहानी सुनो और बच्चो को अपना वर्शन सुनाओ..!
लड़की कहती है- पर बहुत सी कहानियां और बाते एकदम  बकवास और खयाली लगती हैं। पंडित उसको कहते हैं-हमें दर्शन और कहानियां अक्सर खयाली काल्पनिक लगती हैं, क्यूँकि हम उन्हे समझने की वैसी  कोशिश नही करते..!
आप अपनी मां गायत्री जी के बारे में क्या याद करेंगी? उनकी छोटी-छोटी बाते ही ना..? या इसमें भी कोई साइंस है ..?? यही याद करोगी ना कि उन्होंने ये किया, वो किया..?
सुनो,  आपकी माँ गायत्रीजी इस धरती पर पहले भी बहुत बार आकर चली गई हैं, पर इस जन्म में तुम्हारे लिए अपनी छोटी छोटी कहानियां छोड़ कर चली गई हैं।
बस यही एक वाक्य पूरे जीवन का सार है..!!
कहानियां हमारी उम्मीद है जीवन का संचार है..जीवन की आस है..

किसी को कयामत का इंतजार है कि अल्लाह आयेगा और हिसाब मांगेगा, किसीको दुबारा इस खूबसूरत दुनिया में बार बार आने की आस है और बीच मे बस RIP (rest in peace) है, क्योंकि वो इस दुनिया को छोड़ना नही चाहता..मोह है, माया है!

महाभारत भी एक उम्मीद है और रामायण भी..
अर्जुन जब अभिमन्यु के मरने का शोक नही मिटा पाता तो कृष्ण बोलते हैं कि  तुम इस दुख से बाहर क्यो नहीं निकलते..? 
अर्जुन बोले- अगर मैं वहां उस क्षण रणभूमि में मौजूद होता तो अपने पुत्र को बचा लेता..!
कृष्ण बोले फिर..?
...फिर क्या करते..??
फिर क्या तुम्हारा पुत्र सदा के लिए जीवित रहता..?
..अर्जुन नही निकले इस दुख से तो कृष्ण उन्हे स्वर्ग ले गए, कि चलो तुमको तुम्हारे पुत्र से मिलवा देते हैं , 
कृष्ण अर्जुन को स्वर्ग ले गए..
वहां उन्होंने अपने पुत्र अभिमन्यु को देखा, एक बड़े सिंहासन पर बैठे सुंदर वस्त्रों से सुशोभित, अर्जुन देखकर बड़े प्रसन्न हुए और दौड़कर गले मिले.
 अभिमन्यु ने पूछा आप कौन हैं..??
अर्जुन अवाक रह गए..बोले- पुत्र मैं तुम्हारा पिता अर्जुन हूं..
अभिमन्यु  हंसे और बोले- ना जाने कितने जन्म मैं तुम्हारा पिता रहा हूं, और ना जाने कितने जन्म आप मेरे पिता रहे. 
मैं किस किस जन्म को याद करूं..?
हे अर्जुन! जो भी हमारे आपके बीच संबंध है वो सब उसी धरती पर ही है अन्यथा और कहीं नहीं, और वो वहीं समाप्त हो जाते हैं।  इसलिए आप दुखी न हों!  ये मिलन आगे भी हमारा कहीं ना कहीं होता ही रहेगा ..

ऐसे ही बुद्ध का एक किस्सा है: बुद्ध के पास एक बूढ़ी स्त्री रोते हुए आई, तुम ज्ञानी हो मेरे पुत्र को दुबारा जीवित कर दो , मुझसे ये शोक सहन नही हो रहा,
बुद्ध बोले- ठीक है मां , जाओ पहले उस घर से एक लकड़ी ले आओ जिस घर में कोई मृत्यु को  प्राप्त ना हुआ हो.  
बूढ़ी स्त्री ममता के वशीभूत खो कर खुश हुई कि एक न एक घर तो मिल ही जायेगा जहां कभी कोई मरा ना हो..सुबह से शाम हो गई पर ऐसा कोई घर नही मिला जहां किसी न किसी का परिजन मृत्यु को प्राप्त ना हुआ हो..!
बुद्ध की बात अब उस स्त्री को समझ आ चुकी थी...
ये कहानियां ही हैं, पर ये जो कहानियां हैं, ये मन की अशांत नदी में ठहराव लाती हैं, इसमें तर्क लाने या साइंस खोजने का कई बार कोई मतलब नहीं बनता..!!.हम मनुष्य हैं, रोबोट नहीं.., 
मनुष्य शब्द मन से बना है,
बहुत से धर्मो में मनुष्य को मिट्टी का पुतला कहा गया है, कि मिट्टी में ही इसे मिल जाना है।
हिंदू धर्म में इस मिट्टी के पुतले को मनुष्य कहा गया है , इस मनुष्य शब्द का अर्थ डिक्शनरी में आपको शायद ठीक ठाक नहीं मिलेगा..
ये जो मन है, बस यही जीवन है..यही संसार है..
अगर आप ये पढ़ रहे हैं तो इसका एक  मतलब ये है कि- जारी है आपका जीवन, और मृत्यु भी तथा आपकी कहानियां भी...अच्छी कहानियाँ और यादें  बनाइये , संसार से हमें एक दिन चले जाना है, और अन्ततः कहानियों को ही रह जाना हैं।... चलो एक बेहतर दुनिया बनाएं! 🌈
🙏🏻

Friday, November 18, 2022

तेरी ख़ुशबू में बसे खत मैं जलाता कैसे...

'तेरे खुशबू में बसे खत मैं जलाता कैसे ...'

8 शब्दों में महागाथा है ये. करोड़ों के दिल के करीब .


ऐसी नायाब नज़्म लिखने वाले उर्दू के बड़े शायर राजेन्द्र नाथ 'रहबर' साहब ने पिछले रविवार 13.11.2022 को इस फानी दुनिया से रुख़सती ले ली है।

 वे 91 बरस के थे। रहबर साहब ने 70 सालों तक उर्दू अदब की ख़िदमत की। वे खासे पढ़े लिखे भी थे पर शायरी का शौक उन्हें ग़ज़लों और नज्मों की दुनिया में ले आया। अदब को लेकर उनकी ईमानदारी और जज्बे को उनके इस शे'र में देखा जा सकता है -

"ये नस्ल-ए-नौ को अंदाज़ा नहीं है,
के अदब में चोर दरवाज़ा नहीं है...."

(नस्ल-ऐ-नौ = नयी नस्ल, नए युवा, new youth
अंदाज़ा= सम्भावना की जानकारी, estimate
अदब= इज़्ज़त, औपचारिकता, manner 
चोर दरवाज़ा= गुप्त रास्ता, escape route, bypass route)

रहबर साहब की ये नज़्म 'तेरे खुशबू में बसे ख़त...' को बहुत ज्यादा शोहरत मिली। इसे जगजीत सिंह जी ने धुन में पिरोया और आवाज दी तथा  30 सालों तक दुनिया भर में इसे गाया है,  ग़ज़ल प्रेमियों के बीच ये बेहद ही  लोकप्रिय है। इस नज्म को फ़िल्म निर्देशक महेश भट्ट ने अपनी फ़िल्म 'अर्थ' में रखा और फिल्माया था।
Love is life..and it adds lot of colurs in life..

 आज रहबर साहब को आखिरी सलाम बतौर उनकी यह नज्म पेश है।


मोहब्बत और खुलूस दिलों में जिंदा रखिये, और थोड़ा सा साहित्य भी, यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

Friday, October 7, 2022

जोश : how is the Josh ???

How is the जोश!!! ?  

हिन्दी फिल्मी गीतों में कुछ गीत हैं जो जोश से भर देते हैं। इसी जोश के चक्कर मे लगभग हर शादी की बारात में एक गीत "ये देश है वीर जवानों का .." जरूर ही बजता है , जिसमें गीत के बोल से कहीं अधिक 'मायने' उसकी धुन एवं संगीत से उत्पन्न जोश होता है। 

मानव मन की भावना को 'रस' कहा जाता है , यहीं से 'रसिया' शब्द की उत्पत्ति हुई है ( रूस वाला Russia मत समझ लीजियेगा..).  'भाव' मन की स्थिति है जबकि रस उस भाव से उत्पन्न होने वाला सौंदर्य/स्वाद है. रस को ही सजीवों, कला एवं साहित्य का प्राणतत्व माना जाता है। मनुष्य की भावनाओं को कला एवं साहित्य प्रमुखतः 8-9 वर्गों में वर्गीकृत करता है। साहित्य एवं कला में रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है जिन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक नाट्यशास्त्र (नाट्यकला की प्राचीनतम पुस्तक) में 8 प्रमुख रसों एवं उनके स्थायी भाव बताए हैं जो की ये हैं : 
रति (Love)
हास्य (Mirth)
शोक (Sorrow)
क्रोध (Anger)
उत्साह (Energy)
भय (Terror)
जुगुप्सा (Disgust)
विस्मय (Astonishment)

हिंदी साहित्य में भी इसी तरह सिर्फ नौ रस (emotions, भाव) बताए गए हैं जो मनुष्य के अंदर भिन्न भिन्न भावना जगाते हैं.  वो 9 रस एवं उनसे जुड़े   भाव ये हैं: 

वीभत्स रस (घृणा, जुगुप्सा)
हास्य रस (हास)
करुण रस (शोक)
रौद्र रस (क्रोध)
वीर रस (उत्साह)
भयानक रस (भय)
श्रृंगार रस (रति)
अद्भुत रस (आश्चर्य)

अभिनेता संजीव कुमार की  1974 की एक प्रसिद्ध फ़िल्म थी 'नया दिन नई रात ' जिसमें संजीव कुमार ने 9 रोल(किरदार) अदा किये थे एवं उनका हर रोल (चरित्र) इन्ही रसों में से एक का प्रतिनिधित्व (represent) करने वाला था। पहले के जमाने में लोग सिर्फ गाने सुनने, अपने प्रिय कलाकार को देखने,  ड़बल रोल देखने आदि के लिए भी सिनेमा हॉल जाते थे। उस फिल्म का एक गीत " मैं वही, वही बात, मेरे लिये तो हर दिन , नया दिन,  हर रात नयी रात.." भी अच्छा एवं लोकप्रिय रहा है। 
वैसे श्रृंगार रस को रसराज (रसों का राजा) कहा जाता है क्यूंकि इसका उपयोग बहुत व्यापक है। 

 एक फिल्मी गीत " ज़िद्दी है , ज़िद्दी है, दिल ये ज़िद्दी है.." पिछले दिनों सुना जो जोरदार लगा। इसके गायक विशाल डडलानी को आपने सोनी टीवी पर आने वाले संगीत के रियालटी शो  indian idol में  जरूर देखा सुना होगा।  इस गीत की बाकी की पूरी टीम सामान्य जनता के लिए अंजानी सी ही है। 

 बेहद अलग से , अलग अलग लम्बाई (मीटर) के शब्दों/वाक्यों को जो ठीक से जुगलबंदी भी न कर रहे हों, ऐसे बोलों को सुंदर धुन और संगीत में पिरोना किसी म्यूजिक कंपोजर के लिए जरा टेढ़ा और कठिन कार्य होता होगा।  फ़िल्म की कहानी से जोड़ता और बहुत से भावों से भरा हुआ अद्भुत  गीत है ये।
Song Title/गाना: जिद्दी दिल Ziddi Dil
Movie: Mary Kom(Year-2014)
Singer/गायक: Vishal Dadlani
Music Director/संगीतकार: Shashi Suman
Lyrics Writer/गीतकार: Prashant Ingole
Star casts/अभिनीत किरदार: Priyanka Chopra, Sunil Thapa, Darshan Kumar
Music Label: Zee Music)

गीत में किशोर कुमार की तरह की  याडलिंग भी है, मोहित चौहान की तरह की आवाज में खराश भी है..कुल मिलाकर अच्छा जोशीला गीत है, ज़रा ध्यान से सुनिएगा.. , आशा है पसंद आएगा..और जोश को  High रखने में निश्चित ही मददगार होगा...

उल्लास में रहें, जोश में रहें, उड़ते रहें ...और संगीत सुना करें, क्योंकि संगीत मन को पंख लगाए...

बहुत बहुत  शुभकामनाएं!🌈